हरियाणा सरकार द्वारा भूमि-अधिग्रहण का मुवावज़ा आधे से कम करने का आदेश.
श्री मनोहर लाल खट्टर 19 फरवरी, 2015
मुख्यमंत्री, हरियाणा
चंडीगढ़
विषय: हरियाणा सरकार द्वारा भूमि-अधिग्रहण का मुवावज़ा आधे से कम करने का आदेश.
आदरणीय श्री मनोहर लाल खट्टर जी, आपके मुख्यमंत्री का पदभार संभालने के बाद पहली बार आपसे संवाद का अवसर मिल रहा है. इसलिए मैं अपने, अपने साथियों और अपने संगठन की ओर से आपको शुभकामनाएं देता हूँ. आशा करता हूँ कि आपके नेतृत्व में हरियाणा सरकार उन उम्मीदों पर खरी उतरेगी जिनके आधार पर हरियाणा की जनता ने आपकी पार्टी को स्पष्ट बहुमत दिया है. 1. मुझे खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि आपकी सरकार के हाल के निर्णयों और बयानों से उन आशाओं को धक्का लगा है. हरियाणा के किसान और ग्रामवासी आम तौर पर भारतीय जनता पार्टी को शक की निगाह से देखते थे. लेकिन इस बार के विधान-सभा चुनाव में उन्होंने अपने पुराने पूर्वाग्रह छोड़कर खुले दिल से भारतीय जनता पार्टी को समर्थन दिया. इस समर्थन के पीछे वे तमाम वादे थे जो आपकी पार्टी ने किसानों से किये थे. आपकी पार्टी के विधान-सभा चुनाव घोषणा-पत्र में आपने “दूसरी हरित-क्रांति” लाने का वादा किया था. आपने किसानों के साथ वादा किया था कि “किसानों के फसलों के दाम लागत-मूल्य पर 50% लाभ निर्धारित करके निर्धारित किये जाने की पद्धति अपनाई जाएगी. समय समय पर बढ़ने वाली महंगाई के अनुरूप किसानों के उत्पाद/फसलों के दाम भी बढ़ाये जायेंगे.” आपने यह वादा भी किया था कि “कृषि भूमि को कॉर्पोरेट घरानों को नहीं बेचा जायेगा और अगर अधिग्रहण किया तो किसान के शेयर का प्रावधान रखा जायेगा.” 2. लेकिन जब से आपकी सरकार आई है तब से किसान अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहा है. पिछली सरकारों के राज में पनपी किसानों की दुःख-तकलीफ का निवारण करने के बजाय भाजपा की केंद्र और राज्य सरकार ने एक के बाद एक किसानों के साथ धक्का किया है. सरकारी बद-इंतज़ामी के कारण किसान यूरिया खाद के लिए त्राहि-त्राहि कर रहा है. किसान को वादा हुआ था 24 घंटे की बिजली का लेकिन उसकी बिजली 14 घंटे से घटाकर 11 घंटे कर दी गयी है. लागत से 50% लाभ देना तो दूर, सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य को महंगाई दर के हिसाब से भी नहीं बढाया है. फसलों के दाम गिर रहे हैं लेकिन सरकारी मूल्य पर भी खरीद नहीं हो रही है. और ऊपर से भूमि-अधिग्रहण कानून में संशोधन करके किसान की ज़मीन छीनने की तैयारी चल रही है. 3. इस पत्र के माध्यम से मैं आपका ध्यान एक विशेष मुद्दे की ओर खींचना चाहता हूँ. यह मामला पूरी तरह से आपके राज्य सरकार के अधीन है. आपकी सरकार ने किसानों को भूमि-अधिग्रहण पर मिलने वाले मुवावज़े को एक ही झटके में आधे से भी कम कर दिया. मुझे समझ नहीं आ रहा कि आपकी सरकार किसानों के साथ इतना बड़ा धोखा कैसे कर सकती है. 3.1 जैसा की आपको ज्ञात है संसद द्वारा पारित नए भूमि-अधिग्रहण कानून (Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act) 2013 के अनुसार भू-स्वामियों को मुवावज़ा नए तरीके से तय होना है. इस कानून के शेड्यूल 1 के मुताबिक ज़मीन के सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य को किसी गुणांक या फैक्टर से गुणा किया जायेगा. इस गुणन-फल से प्राप्त राशि में उतना ही सोलेशियम जोड़ दिया जायेगा. यह गुणांक कितना होगा इसका फैसला राज्य सरकार को करना होता है. केन्द्रीय कानून के मुताबिक़ यह गुणांक शहरी इलाकों में 1.0 रहेगा लेकिन गाँव में राज्य सरकार 2.0 तक कोई भी गुणांक तय कर सकती है. केन्द्रीय कानून कहता है कि यह फैसला लेते वक़्त शहरी क्षेत्रों से दूरी को ध्यान में रखा जायेगा. अगर राज्य सरकार चाहे तो कलेक्टर रेट से दो गुना तक मुवावजा और उतना ही सोलाशियम यानि कुल मिलकर चार गुना मुआवजा राशि दे सकती है. 3.2 नया कानून बनने के बाद आपकी पूर्ववर्ती सरकार ने मुवावज़ा तय करते वक़्त 2.0 का फैक्टर लगाया था. दिनांक 22 अगस्त 2014 को महेंद्रगढ़ जिले की नारनौल तहसील के शिवनाथपुरा गाँव के भूमि-अधिग्रहण आदेश में सरकार ने कीमत को दुगना करके मुवावज़ा तय किया था. 3.3 लेकिन आपकी सरकार ने केन्द्रीय कानून की भावना, किसानों की आकांक्षा और पिछली सरकार के निर्णय के उलट जाते हुए किसान को कम से कम मुवावज़ा देने की नीति अपनाई है. चार दिसम्बर 2014 को जारी सर्कुलर (संख्या 2331-R-5-2014/16094) के जरिये आपने पूरे ग्रामीण हरियाणा में मुवावज़े के फैक्टर को घटाकर 1.0 कर दिया है. इसका मतलब यह होगा कि भू-स्वामी को मिलने वाला मुवावज़ा आधा हो जायेगा. उदाहरणार्थ अगर कलेक्टर रेट 20 लाख रूपये एकड़ है तो 2.0 फैक्टर के हिसाब से कुल 80 लाख रुपया मुवावज़ा मिलता (20x2.0 = 40 लाख मुवावज़ा + 40 लाख सोलेशियम = 80 लाख) लेकिन इस फैक्टर को 1.0 करने के कारण कुल मुवावज़ा राशि 40 लाख रह जाएगी. ( 20x1.0 = 20 लाख मुवावज़ा + 20 लाख सोलेशियम = 40 लाख) कुल मुवावज़ा राशि आधी कर देने वाला यह नियम अब हरियाणा में हर भूमि-अधिग्रहण पर लागू होगा. 3.4 यही नहीं, आपकी सरकार द्वारा बनाये नए नियमों (दिनांक 28 अक्टूबर 2014) के अनुसार भूमि के मूल्य निर्धारण में भी किसान को भारी घाटा होगा. हरियाणा सरकार की पुरानी अधिग्रहण नीति (9 नवम्बर 2010 को अधिसूचित) के तहत सरकार ने एक न्यूनतम “फ्लोर रेट” तय कर दिया था ताकि जिन इलाकों में ज़मीन के दाम बहुत कम चल रहे हैं वहाँ भी किसान को वाजिब मुवावज़ा मिले. नए नियमों में इस प्रावधान को हटा दिया गया है. पुरानी रजिस्ट्री के हिसाब से मूल्य निर्धारण में भी किसान को कम से कम दाम देने की नीयत झलकती है. पिछले तीन सालों की रजिस्ट्री को देखते वक़्त साल को “कैलेण्डर वर्ष” की तरह परिभाषित किया गया है. इसके चलते वर्तमान वर्ष की नवीनतम रजिस्ट्री का संज्ञान भी नहीं लिया जायेगा. अगर एक एकड़ से कम की कोई रजिस्ट्री हुई है तो उसका भी संज्ञान नहीं लिया जायेगा. यानी कि हर कदम पर सरकार की नीयत यह है कि किसान के मुवावज़े में जितनी कटौती की जा सके उतनी की जाए. 3.5 केन्द्रीय कानून के मुताबिक़ ज़मीन के सरकारी दाम का सरकार द्वरा तय किये फैक्टर से गुना करने पर जो राशि बनती है उसपर सौ फ़ीसदी सोलेशियम देना होगा. लेकिन बावल, जिला रेवाड़ी के 16 गाँव का अधिग्रहण आदेश (संख्या 13/R दिनांक 4 दिसम्बर 2014) जारी करते समय सरकार ने सोलेशियम को घटाकर 30% कर दिया. यह तो बिलकुल ग़ैर-कानूनी है. क्या हरियाणा सरकार भूमि-अधिग्रहण में आगे भी सोलेशियम को 30% की दर से निर्धारित करेगी? 3.6 मुवावज़े की दर को घटाने का यह आदेश जिस जल्दबाजी और गुपचुप तरीके से हुआ वह सरकार की नीयत पर सवाल खड़ा करता है. नियमों में संशोधन करने का ड्राफ्ट सरकार ने २७ नवम्बर 2014 को अधिसूचित किया (संख्या 2249-R-2014/15792). जनता को इसकी सूचना 29 नवम्बर को मिली और आपात्ति दर्ज़ करने के लिए मात्र 3 दिसंबर तक का समय मिला. फिर भी प्रभावित किसानों ने 1 दिसंबर को विस्तृत आपत्तियां दर्ज करवाई. आपकी सरकार ने इन सब वाजिब आपत्तियों को दरकिनार करते हुए प्रस्तावित ड्राफ्ट को हुबहू 4 दिसंबर को अधिसूचित कर दिया. प्रदेश के किसानों के भविष्य पर इतना दूरगामी असर डालने वाले इस फैसले में इतनी जल्दबाजी क्यूँ की गयी? आपके अफसर कह रहे हैं की यह फैसला किसी कमेटी की सफ़ारिश पर लिया गया. क्या सरकार उस कमेटीकी रिपोर्ट को सार्वजनिक करेगी? 3.7 इन सब तथ्यों का अवलोकन करने पर यही निष्कर्ष निकलता है कि आपकी सरकार किसी भी तरह से किसानों का मुवावज़ा कम से कम करने पर आमादा है. ऐसा प्रतीत होता है कि आपकी सरकार किसान के हित में नहीं बल्कि उसकी ज़मीन पर नज़र गड़ाये बिल्डरों और उद्योगपतियों के हित में काम कर रही है. इस मुद्दे पर मीडिया से बात करते हुए आपके प्रतीनिधियों ने कहा है कि यदि किसान को ज्यादा मुवावज़ा दे दिया तो इस ज़मीन पर लगने वाले प्रोजेक्ट की लागत बढ़ जाएगी. यह तो कुतर्क है. एक तो किसी भी उद्योग में ज़मीन की लागत उसका एक छोटा हिस्सा होती है. दूसरा, अगर सरकार को इन प्रोजेक्ट्स की लागत कम करनी है तो सरकार अपनी जेब से इन्हें सब्सिडी क्यूँ नहीं दे देती. यह रियायत किसान से छीन कर क्यूँ दी जा रही है. असली सवाल यह है कि आपकी सरकार की पहली चिंता किसान की आजीविका है या कि बिल्डर और उद्योगपतियों का मुनाफा? 4. इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप (क) नए भूमि-अधिग्रहण अध्यादेश के अंतर्गत बनाये गए इन नियमों के तहत अधिग्रहण को ततकाल प्रभाव से रोक दें. (ख) इन नियमों की समीक्षा कर इनमें तमाम किसान-विरोधी प्रावधानों को हटाया जाए. (ग) मुवावज़े के लिए ग्रामीण क्षेत्रों के गुणन फैक्टर को 1.0 की बजाय 2.0 किया जाय. (घ) यह स्पष्ट किया जाय कि सरकार 30% की बजाय 100% सोलेशियम देगी. आम आदमी पार्टी इस मुद्दे और किसानों के साथ हो रहे चौतरफा धक्के के खिलाफ 21 तारीख से प्रदेश भर में जय-किसान अभियान शुरू कर रही है. संविधान की भावना के अनुरूप और लोकतांत्रिक तरीकों का इस्तेमाल करते हुए आम आदमी पार्टी ऐसे सभी किसान-विरोधी नीतियों और निर्णयों के विरुद्ध संघर्ष करेगी. जब तक इन किसान-विरोधी प्रावधानों को बदला नहीं जाता तब तक आम आदमी पार्टी हरियाणा प्रदेश में कहीं भी भूमि-अधिग्रहण नहीं होने देगी. आशा है की प्रदेश के किसानों की हितरक्षा के अपने दायित्व को देखते हुए आप इन मांगो को स्वीकार कर लेंगे और किसानो और सरकार के बीच किसी भी टकराहट की नौबत नहीं आने देंगे. सादर, आपका योगेन्द्र यादव हरियाणा राज्य प्रभारी और मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता, आम आदमी पार्टी
आदरणीय श्री मनोहर लाल खट्टर जी, आपके मुख्यमंत्री का पदभार संभालने के बाद पहली बार आपसे संवाद का अवसर मिल रहा है. इसलिए मैं अपने, अपने साथियों और अपने संगठन की ओर से आपको शुभकामनाएं देता हूँ. आशा करता हूँ कि आपके नेतृत्व में हरियाणा सरकार उन उम्मीदों पर खरी उतरेगी जिनके आधार पर हरियाणा की जनता ने आपकी पार्टी को स्पष्ट बहुमत दिया है. 1. मुझे खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि आपकी सरकार के हाल के निर्णयों और बयानों से उन आशाओं को धक्का लगा है. हरियाणा के किसान और ग्रामवासी आम तौर पर भारतीय जनता पार्टी को शक की निगाह से देखते थे. लेकिन इस बार के विधान-सभा चुनाव में उन्होंने अपने पुराने पूर्वाग्रह छोड़कर खुले दिल से भारतीय जनता पार्टी को समर्थन दिया. इस समर्थन के पीछे वे तमाम वादे थे जो आपकी पार्टी ने किसानों से किये थे. आपकी पार्टी के विधान-सभा चुनाव घोषणा-पत्र में आपने “दूसरी हरित-क्रांति” लाने का वादा किया था. आपने किसानों के साथ वादा किया था कि “किसानों के फसलों के दाम लागत-मूल्य पर 50% लाभ निर्धारित करके निर्धारित किये जाने की पद्धति अपनाई जाएगी. समय समय पर बढ़ने वाली महंगाई के अनुरूप किसानों के उत्पाद/फसलों के दाम भी बढ़ाये जायेंगे.” आपने यह वादा भी किया था कि “कृषि भूमि को कॉर्पोरेट घरानों को नहीं बेचा जायेगा और अगर अधिग्रहण किया तो किसान के शेयर का प्रावधान रखा जायेगा.” 2. लेकिन जब से आपकी सरकार आई है तब से किसान अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहा है. पिछली सरकारों के राज में पनपी किसानों की दुःख-तकलीफ का निवारण करने के बजाय भाजपा की केंद्र और राज्य सरकार ने एक के बाद एक किसानों के साथ धक्का किया है. सरकारी बद-इंतज़ामी के कारण किसान यूरिया खाद के लिए त्राहि-त्राहि कर रहा है. किसान को वादा हुआ था 24 घंटे की बिजली का लेकिन उसकी बिजली 14 घंटे से घटाकर 11 घंटे कर दी गयी है. लागत से 50% लाभ देना तो दूर, सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य को महंगाई दर के हिसाब से भी नहीं बढाया है. फसलों के दाम गिर रहे हैं लेकिन सरकारी मूल्य पर भी खरीद नहीं हो रही है. और ऊपर से भूमि-अधिग्रहण कानून में संशोधन करके किसान की ज़मीन छीनने की तैयारी चल रही है. 3. इस पत्र के माध्यम से मैं आपका ध्यान एक विशेष मुद्दे की ओर खींचना चाहता हूँ. यह मामला पूरी तरह से आपके राज्य सरकार के अधीन है. आपकी सरकार ने किसानों को भूमि-अधिग्रहण पर मिलने वाले मुवावज़े को एक ही झटके में आधे से भी कम कर दिया. मुझे समझ नहीं आ रहा कि आपकी सरकार किसानों के साथ इतना बड़ा धोखा कैसे कर सकती है. 3.1 जैसा की आपको ज्ञात है संसद द्वारा पारित नए भूमि-अधिग्रहण कानून (Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act) 2013 के अनुसार भू-स्वामियों को मुवावज़ा नए तरीके से तय होना है. इस कानून के शेड्यूल 1 के मुताबिक ज़मीन के सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य को किसी गुणांक या फैक्टर से गुणा किया जायेगा. इस गुणन-फल से प्राप्त राशि में उतना ही सोलेशियम जोड़ दिया जायेगा. यह गुणांक कितना होगा इसका फैसला राज्य सरकार को करना होता है. केन्द्रीय कानून के मुताबिक़ यह गुणांक शहरी इलाकों में 1.0 रहेगा लेकिन गाँव में राज्य सरकार 2.0 तक कोई भी गुणांक तय कर सकती है. केन्द्रीय कानून कहता है कि यह फैसला लेते वक़्त शहरी क्षेत्रों से दूरी को ध्यान में रखा जायेगा. अगर राज्य सरकार चाहे तो कलेक्टर रेट से दो गुना तक मुवावजा और उतना ही सोलाशियम यानि कुल मिलकर चार गुना मुआवजा राशि दे सकती है. 3.2 नया कानून बनने के बाद आपकी पूर्ववर्ती सरकार ने मुवावज़ा तय करते वक़्त 2.0 का फैक्टर लगाया था. दिनांक 22 अगस्त 2014 को महेंद्रगढ़ जिले की नारनौल तहसील के शिवनाथपुरा गाँव के भूमि-अधिग्रहण आदेश में सरकार ने कीमत को दुगना करके मुवावज़ा तय किया था. 3.3 लेकिन आपकी सरकार ने केन्द्रीय कानून की भावना, किसानों की आकांक्षा और पिछली सरकार के निर्णय के उलट जाते हुए किसान को कम से कम मुवावज़ा देने की नीति अपनाई है. चार दिसम्बर 2014 को जारी सर्कुलर (संख्या 2331-R-5-2014/16094) के जरिये आपने पूरे ग्रामीण हरियाणा में मुवावज़े के फैक्टर को घटाकर 1.0 कर दिया है. इसका मतलब यह होगा कि भू-स्वामी को मिलने वाला मुवावज़ा आधा हो जायेगा. उदाहरणार्थ अगर कलेक्टर रेट 20 लाख रूपये एकड़ है तो 2.0 फैक्टर के हिसाब से कुल 80 लाख रुपया मुवावज़ा मिलता (20x2.0 = 40 लाख मुवावज़ा + 40 लाख सोलेशियम = 80 लाख) लेकिन इस फैक्टर को 1.0 करने के कारण कुल मुवावज़ा राशि 40 लाख रह जाएगी. ( 20x1.0 = 20 लाख मुवावज़ा + 20 लाख सोलेशियम = 40 लाख) कुल मुवावज़ा राशि आधी कर देने वाला यह नियम अब हरियाणा में हर भूमि-अधिग्रहण पर लागू होगा. 3.4 यही नहीं, आपकी सरकार द्वारा बनाये नए नियमों (दिनांक 28 अक्टूबर 2014) के अनुसार भूमि के मूल्य निर्धारण में भी किसान को भारी घाटा होगा. हरियाणा सरकार की पुरानी अधिग्रहण नीति (9 नवम्बर 2010 को अधिसूचित) के तहत सरकार ने एक न्यूनतम “फ्लोर रेट” तय कर दिया था ताकि जिन इलाकों में ज़मीन के दाम बहुत कम चल रहे हैं वहाँ भी किसान को वाजिब मुवावज़ा मिले. नए नियमों में इस प्रावधान को हटा दिया गया है. पुरानी रजिस्ट्री के हिसाब से मूल्य निर्धारण में भी किसान को कम से कम दाम देने की नीयत झलकती है. पिछले तीन सालों की रजिस्ट्री को देखते वक़्त साल को “कैलेण्डर वर्ष” की तरह परिभाषित किया गया है. इसके चलते वर्तमान वर्ष की नवीनतम रजिस्ट्री का संज्ञान भी नहीं लिया जायेगा. अगर एक एकड़ से कम की कोई रजिस्ट्री हुई है तो उसका भी संज्ञान नहीं लिया जायेगा. यानी कि हर कदम पर सरकार की नीयत यह है कि किसान के मुवावज़े में जितनी कटौती की जा सके उतनी की जाए. 3.5 केन्द्रीय कानून के मुताबिक़ ज़मीन के सरकारी दाम का सरकार द्वरा तय किये फैक्टर से गुना करने पर जो राशि बनती है उसपर सौ फ़ीसदी सोलेशियम देना होगा. लेकिन बावल, जिला रेवाड़ी के 16 गाँव का अधिग्रहण आदेश (संख्या 13/R दिनांक 4 दिसम्बर 2014) जारी करते समय सरकार ने सोलेशियम को घटाकर 30% कर दिया. यह तो बिलकुल ग़ैर-कानूनी है. क्या हरियाणा सरकार भूमि-अधिग्रहण में आगे भी सोलेशियम को 30% की दर से निर्धारित करेगी? 3.6 मुवावज़े की दर को घटाने का यह आदेश जिस जल्दबाजी और गुपचुप तरीके से हुआ वह सरकार की नीयत पर सवाल खड़ा करता है. नियमों में संशोधन करने का ड्राफ्ट सरकार ने २७ नवम्बर 2014 को अधिसूचित किया (संख्या 2249-R-2014/15792). जनता को इसकी सूचना 29 नवम्बर को मिली और आपात्ति दर्ज़ करने के लिए मात्र 3 दिसंबर तक का समय मिला. फिर भी प्रभावित किसानों ने 1 दिसंबर को विस्तृत आपत्तियां दर्ज करवाई. आपकी सरकार ने इन सब वाजिब आपत्तियों को दरकिनार करते हुए प्रस्तावित ड्राफ्ट को हुबहू 4 दिसंबर को अधिसूचित कर दिया. प्रदेश के किसानों के भविष्य पर इतना दूरगामी असर डालने वाले इस फैसले में इतनी जल्दबाजी क्यूँ की गयी? आपके अफसर कह रहे हैं की यह फैसला किसी कमेटी की सफ़ारिश पर लिया गया. क्या सरकार उस कमेटीकी रिपोर्ट को सार्वजनिक करेगी? 3.7 इन सब तथ्यों का अवलोकन करने पर यही निष्कर्ष निकलता है कि आपकी सरकार किसी भी तरह से किसानों का मुवावज़ा कम से कम करने पर आमादा है. ऐसा प्रतीत होता है कि आपकी सरकार किसान के हित में नहीं बल्कि उसकी ज़मीन पर नज़र गड़ाये बिल्डरों और उद्योगपतियों के हित में काम कर रही है. इस मुद्दे पर मीडिया से बात करते हुए आपके प्रतीनिधियों ने कहा है कि यदि किसान को ज्यादा मुवावज़ा दे दिया तो इस ज़मीन पर लगने वाले प्रोजेक्ट की लागत बढ़ जाएगी. यह तो कुतर्क है. एक तो किसी भी उद्योग में ज़मीन की लागत उसका एक छोटा हिस्सा होती है. दूसरा, अगर सरकार को इन प्रोजेक्ट्स की लागत कम करनी है तो सरकार अपनी जेब से इन्हें सब्सिडी क्यूँ नहीं दे देती. यह रियायत किसान से छीन कर क्यूँ दी जा रही है. असली सवाल यह है कि आपकी सरकार की पहली चिंता किसान की आजीविका है या कि बिल्डर और उद्योगपतियों का मुनाफा? 4. इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप (क) नए भूमि-अधिग्रहण अध्यादेश के अंतर्गत बनाये गए इन नियमों के तहत अधिग्रहण को ततकाल प्रभाव से रोक दें. (ख) इन नियमों की समीक्षा कर इनमें तमाम किसान-विरोधी प्रावधानों को हटाया जाए. (ग) मुवावज़े के लिए ग्रामीण क्षेत्रों के गुणन फैक्टर को 1.0 की बजाय 2.0 किया जाय. (घ) यह स्पष्ट किया जाय कि सरकार 30% की बजाय 100% सोलेशियम देगी. आम आदमी पार्टी इस मुद्दे और किसानों के साथ हो रहे चौतरफा धक्के के खिलाफ 21 तारीख से प्रदेश भर में जय-किसान अभियान शुरू कर रही है. संविधान की भावना के अनुरूप और लोकतांत्रिक तरीकों का इस्तेमाल करते हुए आम आदमी पार्टी ऐसे सभी किसान-विरोधी नीतियों और निर्णयों के विरुद्ध संघर्ष करेगी. जब तक इन किसान-विरोधी प्रावधानों को बदला नहीं जाता तब तक आम आदमी पार्टी हरियाणा प्रदेश में कहीं भी भूमि-अधिग्रहण नहीं होने देगी. आशा है की प्रदेश के किसानों की हितरक्षा के अपने दायित्व को देखते हुए आप इन मांगो को स्वीकार कर लेंगे और किसानो और सरकार के बीच किसी भी टकराहट की नौबत नहीं आने देंगे. सादर, आपका योगेन्द्र यादव हरियाणा राज्य प्रभारी और मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता, आम आदमी पार्टी
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