समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता श्री राजेन्द्र चैधरी ने कहा है उत्तर प्रदेश में समाजवादी सरकार ने अपने साढ़े तीन साल के कार्यकाल में विकास के एजेण्डा को जिस तेजी से आगे बढ़ाया है, उसका संदेश अन्य प्रांतो तक भी गया है। मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने जनहित की अनेक योजनाएं प्रारम्भ की है जिनसे समाज का हर वर्ग लाभान्वित हुआ है। इससे विपक्ष बुरी तरह निराश और कुंठित हुआ है। अपनी कुंठा में वह जनकल्याणकारी कार्यक्रमों की आलोचना कर बैठता है। खासकर बसपा अध्यक्ष को तो अनर्गल बयानबाजी की ऐसी लत है कि वह सारी राजनीतिक मर्यादाओं को लांघ जाती है। दलितों के नाम पर राजनीति चमकाने की उनकी असफल कोशिशों से जनता भलीभांति वाकिफ हो गई है। कुछ और हैं जो समाजवादी सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के विरोध में डंका पीटने लगते हैं।
बसपा अध्यक्ष को समाजवादी सरकार के खिलाफ और कुछ नहीं मिला तो हरियाणा की एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना से उत्तर प्रदेश को जोड़कर उन्होने उत्तर प्रदेश के प्रति अपनी दुर्भावना व्यक्त कर दी। इससे उनकी राजनीतिक समझ का भी खुलासा हो गया है। बसपा के पांच वर्ष के शासनकाल में उसकी मुख्यमंत्री ने कभी किसी दलित को आसपास नहीं फटकने दिया। उनके कार्यकाल में ही बसपा विधायक द्वारा निषाद किशोरी के साथ बलात्कार किया गया। एक किशोरी की लाश निघासन थाने में लगे एक पेड़ पर लटकी मिली थी।
बसपा ने दलितों को वोट बैंक बनाकर इस समाज का सबसे ज्यादा नुकसान किया है। बाबा साहब अम्बेडकर ने जिस आंदोलन की शुरूआत की थी उसे आगे ले जाने के बजाय बसपा अध्यक्ष ने बहुत पीछे ढकेल दिया। इसके विपरीत जब श्री मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे तो उन्होने ही 10 हजार अम्बेडकर गांवो का चयन किया था और विधान सभा के मुख्य मार्ग का नाम भी बाबा साहेब के नाम पर रखा था। समाजवादी सरकार ने पिछड़ो की तरह दलितों को भी सम्मान से जीने के अवसर दिलाएं है।
बसपा अध्यक्ष का एक पुराना शिगूफा भाजपा-समाजवादी पार्टी को साथ जोड़ना भी है। शायद वे समझती है कि एक झूठ बार-बार दुहराने से सच हो जाता है। तथ्य तो यह है कि बसपा-भाजपा के पुराने बहन-भाई वाले रिश्ते है। भाजपा की मदद से ही वे प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं और इस कर्ज को उतारने ही वे गुजरात में मुख्यमंत्री मोदी जी के पक्ष में चुनाव प्रचार करने गई थी। अब भाई-बहन में इस बात की होड़ लगी है कि कौन समाजवादी सरकार के समय हो रहे विकास में रोड़ा बन सकता हैं। दोनों भाई-बहन उत्तर प्रदेश को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते है। दरअसल बसपा का राजनीतिक चरित्र भाजपा से मेलखाता है। जनभावनाओं का सम्मान करना उन्हें नहीं आता है। दोनों अलोकतांत्रिक गतिविधियों में व्यस्त है।
भाजपा प्रदेश में सांप्रदायिकता का नंगानाच कर रही है। वैसे पूरे साढ़े तीन साल भाजपा ने लगातार अराजकता को बढ़ावा देनेवाले काम किए हैं। लेकिन उसमें शासन-प्रशासन की सख्ती तथा मुख्यमंत्री जी की दृढ़ता के आगे भाजपा सफल नहीं हो सकी है।
प्रदेश में समाजवादी सरकार और इसके मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव प्रदेष की समस्याओं तथा समाज के सभी वर्गो के प्रति अत्यंत संवेदनशील है। वे जानते हैं कि राजनीति के अलावा भी जीवन में बहुत से अन्य प्रसंग महत्व रखते हैं। वे समाज में सौहार्द तथा सद्भावना को विस्तार देने को कटिबद्ध है। धर्मनिरपेक्षता के प्रति उनका विश्वास दृढ़ है। विपक्ष को अपनी विध्वंसात्मक राजनीति छोड़कर रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाने का प्रयास करना चाहिए।
(राजेन्द्र चौधरी)
प्रदेश प्रवक्ता
बसपा अध्यक्ष को समाजवादी सरकार के खिलाफ और कुछ नहीं मिला तो हरियाणा की एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना से उत्तर प्रदेश को जोड़कर उन्होने उत्तर प्रदेश के प्रति अपनी दुर्भावना व्यक्त कर दी। इससे उनकी राजनीतिक समझ का भी खुलासा हो गया है। बसपा के पांच वर्ष के शासनकाल में उसकी मुख्यमंत्री ने कभी किसी दलित को आसपास नहीं फटकने दिया। उनके कार्यकाल में ही बसपा विधायक द्वारा निषाद किशोरी के साथ बलात्कार किया गया। एक किशोरी की लाश निघासन थाने में लगे एक पेड़ पर लटकी मिली थी।
बसपा ने दलितों को वोट बैंक बनाकर इस समाज का सबसे ज्यादा नुकसान किया है। बाबा साहब अम्बेडकर ने जिस आंदोलन की शुरूआत की थी उसे आगे ले जाने के बजाय बसपा अध्यक्ष ने बहुत पीछे ढकेल दिया। इसके विपरीत जब श्री मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे तो उन्होने ही 10 हजार अम्बेडकर गांवो का चयन किया था और विधान सभा के मुख्य मार्ग का नाम भी बाबा साहेब के नाम पर रखा था। समाजवादी सरकार ने पिछड़ो की तरह दलितों को भी सम्मान से जीने के अवसर दिलाएं है।
बसपा अध्यक्ष का एक पुराना शिगूफा भाजपा-समाजवादी पार्टी को साथ जोड़ना भी है। शायद वे समझती है कि एक झूठ बार-बार दुहराने से सच हो जाता है। तथ्य तो यह है कि बसपा-भाजपा के पुराने बहन-भाई वाले रिश्ते है। भाजपा की मदद से ही वे प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं और इस कर्ज को उतारने ही वे गुजरात में मुख्यमंत्री मोदी जी के पक्ष में चुनाव प्रचार करने गई थी। अब भाई-बहन में इस बात की होड़ लगी है कि कौन समाजवादी सरकार के समय हो रहे विकास में रोड़ा बन सकता हैं। दोनों भाई-बहन उत्तर प्रदेश को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते है। दरअसल बसपा का राजनीतिक चरित्र भाजपा से मेलखाता है। जनभावनाओं का सम्मान करना उन्हें नहीं आता है। दोनों अलोकतांत्रिक गतिविधियों में व्यस्त है।
भाजपा प्रदेश में सांप्रदायिकता का नंगानाच कर रही है। वैसे पूरे साढ़े तीन साल भाजपा ने लगातार अराजकता को बढ़ावा देनेवाले काम किए हैं। लेकिन उसमें शासन-प्रशासन की सख्ती तथा मुख्यमंत्री जी की दृढ़ता के आगे भाजपा सफल नहीं हो सकी है।
प्रदेश में समाजवादी सरकार और इसके मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव प्रदेष की समस्याओं तथा समाज के सभी वर्गो के प्रति अत्यंत संवेदनशील है। वे जानते हैं कि राजनीति के अलावा भी जीवन में बहुत से अन्य प्रसंग महत्व रखते हैं। वे समाज में सौहार्द तथा सद्भावना को विस्तार देने को कटिबद्ध है। धर्मनिरपेक्षता के प्रति उनका विश्वास दृढ़ है। विपक्ष को अपनी विध्वंसात्मक राजनीति छोड़कर रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाने का प्रयास करना चाहिए।
(राजेन्द्र चौधरी)
प्रदेश प्रवक्ता
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